भारत में रूफ-टॉप और ग्राउंड-माउंटेड सोलर: 2025 तक की विस्तृत तस्वीर

Kiran Beldar · Dec 11, 2025 · 7 mins read

भारत में रूफ-टॉप और ग्राउंड-माउंटेड सोलर: 2025 तक की विस्तृत तस्वीर (हिंदी में)

परिचय पिछले एक दशक में भारत ने सौर ऊर्जा के विस्तार में अभूतपूर्व प्रगति की है। 2014 में कुछ ही गीगावाट की तैनाती से आज 2025 तक सौर ऊर्जा भारत की सबसे बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा श्रेणियों में से एक बन चुकी है। इस ब्लॉग में हम रूफ-टॉप (Grid-connected rooftop) और ग्राउंड-माउंटेड (यानी बड़े सोलर पार्क और utility-scale) सोलर इंस्टालेशनों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे — 2010s से लेकर 2025 तक के रुझान, नीतियाँ, तकनीकी विकास, आर्थिक-सामाजिक प्रभाव, और आने वाली चुनौतियाँ व अवसर। (नोट: जहाँ तथ्य-आधारित आँकड़े दिए गए हैं, उनके स्रोत दिये गये हैं।) (akshayurja.gov.in)

1) कुल परिदृश्य — 2025 तक क्या हासिल हुआ?

  • 2025 तक भारत की कुल सौर इंस्टॉल्ड क्षमता (कुल ग्राउंड-माउंटेड + रूफटॉप + हाइब्रिड) 100+ GW के स्तर को पार कर चुकी है; विभिन्न सरकारी रिपोर्ट और पोर्टल्स 2025 के मध्य-अंत तक 1.2-1.3 लाख मेगावाट (≈120–130 GW) के आसपास बताती हैं। यह तेज़ी 2014 के बाद से हुई भारी वृद्धि का परिणाम है। (akshayurja.gov.in)

  • इसी अवधि में ग्रिड-कनेक्टेड रूफटॉप सोलर का भी महत्वपूर्ण विस्तार हुआ: सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2025 के अंत तक रूफटॉप इंस्टालेशन लगभग 22–23 GW के स्तर पर पहुँचा। वहीं H1-2025 जैसी ताज़ा रिपोर्टों में H1 में लगभग 3.2 GW रूफटॉप जोड़ने की बात भी दर्ज हुई — जो साल दर साल की वृद्धि का संकेत है। (Ministry of New and Renewable Energy)

  • ग्राउंड-माउंटेड सोलर (बड़े सोलर पार्क, utility-scale, फ्लोटिंग सोलर आदि) बुनियादी ढाँचे और बड़े निवेश के कारण कुल क्षमता का सबसे बड़ा हिस्सा बनाते हैं; SECI व MNRE के डेटा में सोलर पार्कों के लिये आवंटित और कन्फ़िगर की गयी बड़ी क्षमता दर्ज है। (seci.co.in)

2) रूफ-टॉप बनाम ग्राउंड-माउंटेड — अलग-अलग भूमिका और उपयोग केस

रूफ-टॉप सोलर (Distributed / Decentralized)

  • किसके लिये: घर-बार, स्कूल, कालेज, दफ्तर, संस्थागत भवन, छोटे व्यवसाय और कृषि-उपयोग (सोलर वाटर पम्प)।

  • लाभ: उपभोक्ता-स्तर पर बिजली बिल में कटौती, शिखर मांग घटाना (peak shavings), नेट-मेटरिंग के जरिये ग्रिड को ऊर्जा देना, ग्रीन हाउस गैसों में कटौती, और ग्रामीण/दूरदराज़ क्षेत्रों में ऊर्जा पहुँच।

  • राजनीतिक प्रोत्साहन: भारत सरकार ने Grid Connected Rooftop Solar Programme आदि योजनाएँ चलायीं और PM-Surya Ghar जैसे उपक्रम Residential uptake को तेज करने के लिये सब्सिडी/सीएफए और सरल ऑनलाइन आवेदन पोर्टल उपलब्ध कराए। 2025 तक कई लाख-घरों पर रूफटॉप पैनल लग चुके हैं — सरकार की योजनाएँ और राष्ट्रीय पोर्टल इस विस्तार के प्रमुख स्तंभ रहे। (Ministry of New and Renewable Energy)

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ग्राउंड-माउंटेड सोलर (Utility-scale / Solar parks)

  • किसके लिये: बड़े ऊर्जा उपभोक्ता, पॉवर स्टेशन, राज्य/केंद्र योजनाएँ और ट्रेड-र/वेंडर; बड़े निवेश और भूमि-आधारित परियोजनाएँ।

  • लाभ: विशाल स्केल की अर्थव्यवस्था (economies of scale), कम LCOE (levelized cost of electricity), बड़े-बड़े बैटरी-स्टोरेज और ग्रिड-इंटीग्रेशन की सम्भावना। राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बड़े सोलर पार्कों का विकास हुआ है। SECI और राज्य एजेंसियाँ सोलर पार्कों के लिये भूमि, कनेक्टिविटी और नीतियाँ उपलब्ध कराती हैं। (seci.co.in)

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3) नीतियाँ, योजनाएँ और सरकारी पहलें (उपलब्धियाँ 2025 तक)

  • Grid-Connected Rooftop Solar Programme (Phase-II) — MNRE की प्रमुख पहल, जिसके लक्ष्य में 40 GW रूफटॉप क्षमता तक पहुँचना शामिल है; फ़ेज-II में कई सब्सिडी और वित्तीय सहायता विकल्प रखे गए हैं और इसे 31 मार्च 2026 तक बढ़ाया गया था। यह नीति घरेलू, वाणिज्यिक और संस्थागत रूफटॉप को बढ़ावा दे रही है। (Ministry of New and Renewable Energy)

  • PM-Surya Ghar: Muft Bijli Yojana — 2025 में यह कार्यक्रम विशेष चर्चा में रहा; सरकार ने लाखों गृहस्थियों को रूफ-टॉप सोलर उपकरण उपलब्ध कराने के लिये सब्सिडी व सविधाएँ दी हैं। दिसंबर 2025 के प्रेस-नोट के अनुसार 23.9-24 लाख घरों तक इस स्कीम से लाभ पहुँच चुका है (घरेलू रूफटॉप इंस्टालेशन के आँकड़े)। (The Times of India)

  • Solar Parks & Green Energy Corridor — बड़े-बड़े utility-scale प्रोजेक्ट्स के लिये राज्य-स्तर और केंद्र-समन्वित पहलें; ट्रांसमिशन सुधार (Green Energy Corridor) जैसे कदम ग्रिड इंटीग्रेशन को सहज बनाते हैं। राजस्थान जैसे राज्यों में बड़े संसाधन और भूमि आवंटन से बड़े पैमाने पर सोलर पार्क विकसित किये गये। (The Times of India)

4) टेक्नोलॉजी और विनिर्माण (Manufacturing) — 2024–25 का उछाल

  • 2024–25 के दौरान भारत में सोलर मॉड्यूल निर्माण क्षमता में तेज़ी आयी — सरकारी और इंडस्ट्री रिपोर्ट्स बताती हैं कि देश की मॉड्यूल मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी कई गुना बढ़ी और 30–70 GW के बीच पहुँच गई (सूत्रों के अनुसार 38 GW से 74 GW जैसी रिपोर्टें भी रिपोर्ट की गयीं)। इससे आयात-निर्भरता कम करने में मदद मिली और घरेलू आपूर्ति-श्रंखला मजबूत हुई। (Press Information Bureau)

  • नवीन तकनीकें — परोव्स्काइट और बहु-जंक्शन सेल, हाई-एफिशिएंसी मॉनोक्रिस्टलाइन मॉड्यूल्स, बिफेशियल पैनल्स, फ्लोटिंग सोलर और BIPV (Building-Integrated Photovoltaics) जैसे समाधान रूफटॉप व ग्राउंड-माउंटेड दोनों में अपनाये जा रहे हैं। साथ ही, सोलर + बैटरी हाइब्रिड सिस्टम घरेलू व कमर्शियल उपयोग के लिये प्रचलित हो रहे हैं। (SolarQuarter)

5) आर्थिक पहलू — लागत, निवेश और रोजगार

  • लागत में कमी (LCOE): बड़े-पैमाने पर सोलर उत्पादन और स्थानीय विनिर्माण के साथ सोलर-किलोवाट-घंटे की लागत समय के साथ कम हुई। नतीजतन utility-scale सोलर और कई मामलों में रूफटॉप संयोजन सस्ती बिजली प्रदान करने में सक्षम हुए हैं। (Mercomindia.com)

  • निवेश प्रवाह: घरेलू और विदेशी निवेश दोनों ने सोलर परियोजनाओं को आकर्षित किया; साथ ही, बैंकिंग और वित्तीय संस्थान भी सोलर फाइनेंसिंग मॉडल (ईएमआई, लीज़, RESCO मॉडल) ऑफर कर रहे हैं जिससे रूफ-टॉप अपनाना आसान हुआ। (JMK Research)

  • रोज़गार: सोलर निर्माण, इंस्टालेशन, ऑपरेशन और मेंटेनेंस से जॉब-क्रिएशन हुआ — विशेषकर स्थानीय स्तर पर कौशल-विकास और तकनीकी प्रशिक्षण का विस्तार हुआ है।

6) मुख्य चुनौतियाँ और बाधाएँ (बातें जो अब भी हैं)

  • भूमि और पार्यावरणीय बाधाएँ: बड़े सोलर पार्कों के लिये पर्याप्त और सिट-सuit भूमि की उपलब्धता, जैव-विविधता पर प्रभाव, तथा स्थानीय प्रतिरोध (land acquisition issues) कुछ प्रोजेक्ट्स को प्रभावित करते रहे हैं। संसद की एक हालिया समिति ने भी इन बिन्दुओं पर तेज कार्रवाई की सिफारिश की है। (The Times of India)

  • ग्रिड-इंटीग्रेशन और स्टोरेज: विजुअल रूप से बढ़ती सोलर क्षमताएँ ग्रिड-स्थिरता के लिये चुनौतियाँ लाती हैं; बैटरी-स्टोरेज सिस्टम (BESS) और स्मार्ट ग्रिड उपायों की आवश्यकता बढ़ गयी है। कई जगहों पर BESS की लागत और मानकीकरण अभी बाधा हैं। (The Times of India)

  • नेट-मेटरिंग और रेगुलेटरी मुद्दे: राज्यों के नेट-मेटरिंग नियम और विजिलीटी वितरण कंपनियों (DISCOMs) की पॉलिसी में भिन्नता होने से घरेलू और वाणिज्यिक ग्राहक कभी-कभी जटिलताओं का सामना करते हैं; इन नियमों की समरसता की ज़रूरत है। (Ministry of New and Renewable Energy)

7) सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव

  • वातावरणीय लाभ: कोयला आधारित उत्पादन को घटाकर सौर स्रोत अपनाने से CO₂ उत्सर्जन में बड़ी कमी आती है; शहरी क्षेत्रों में एयर-पॉल्यूशन पर भी लाभकारी प्रभाव देखने को मिलता है।

  • सामुदायिक लाभ: ग्रामीण इलाकों में सोलर-पम्प और माइक्रो-ग्रिड्स से कृषि उपज, सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सिंचाई और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है।

  • नैतिक और नियोजन संबंधी मुद्दे: भूमि उपयोग, प्रभाव आकलन, और स्थानीय समुदायों की सहमति सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त EIA (Environmental Impact Assessment) और सामाजिक परामर्श ज़रूरी है। (The Times of India)

8) केस-स्टडी (संक्षेप में उदाहरण)

  • राजस्थान/गुजरात सोलर पार्क मॉडल: विस्तृत भूमि और उच्च सौर संसाधन होने के कारण बड़े-पैमाने पर ग्राउंड-माउंटेड पार्कों का विकास हुआ; साथ ही ट्रांसमिशन लाइनें और Green Energy Corridor जैसे प्रोजेक्टों से बिजली अन्य राज्यों तक पहुँच रही है। (The Times of India)

  • शहरी रूफ-टॉप प्रोग्राम: कुछ शहरों और संस्थागत भवनों में बड़े पैमाने पर रूफ-टॉप इंस्टालेशन से स्थानीय स्वनिर्भरता और बिजली खर्च में कमी देखने को मिली है। Chandigarh जैसे उदाहरणों में शासन-प्रेरित संस्थागत रूफ-टॉप को बढ़ावा मिला। (The Times of India)

9) 2025 के बाद का मार्ग: अवसर और सिफारिशें

  1. स्टोरेज पर फोकस: बैटरी स्टोरेज का बड़े पैमाने पर अपनाना (BESS) और लागत कम करना ज़रूरी है — ताकि शाम-सवेरे के शिखर और ग्रिड-स्थिरता संभली रहे। (The Times of India)

  2. नीति-समन्वय और एकीकृत नेट-मेटरिंग: राज्य-स्तर की नीतियों को केन्द्र के दिशा-निर्देशों के अनुरूप कर सामंजस्य बढ़ाना, ताकि उपभोक्ता अनुभव सुस्पष्ट हो। (Ministry of New and Renewable Energy)

  3. स्थानीय विनिर्माण और सप्लाई-चेन: मॉड्यूल, बैटरी एवं BOS (Balance of System) घटकों के लिये घरेलू विनिर्माण को और सुदृढ़ करना; इससे रोज़गार पैदा होंगे और आयात-निर्भरता घटेगी। (Press Information Bureau)

  4. कमर्शियल-इनोवेशन: BIPV, फ्लोटिंग सोलर, एग्री-सोलर (कृषि के साथ संयोजन) और शहरों में छतों का बहु-उपयोग (multi-purpose rooftops) जैसे मॉडल तेजी से अपनाये जाने चाहिए। (SolarQuarter)

निष्कर्ष — क्या सीखा जाए?

2025 तक भारत ने रूफ-टॉप और ग्राउंड-माउंटेड दोनों ही क्षेत्रों में जबरदस्त प्रगति दिखाई है। ग्राउंड-माउंटेड परियोजनाओं ने कुल क्षमता के बड़े हिस्से का निर्माण किया जबकि रूफ-टॉप ने नागरिक-स्तर पर ऊर्जा-स्वराज्य (energy self-reliance) और दैनिक बिजली लागत घटाने में निर्णायक भूमिका निभाई। नीति-समर्थन, विनिर्माण क्षमता, और निवेश के साथ-साथ ग्रिड-इंटीग्रेशन, स्टोरेज और पारिस्थितिक/सामाजिक समन्वय ही अगले चरण की सफलता सुनिश्चित करेंगे। भारत के पास संसाधन, बाजार और नीति-धक्का दोनों हैं — और सही संचालन से सौर ही हमारे ऊर्जा-भविष्य की रीढ़ बन सकता है। (akshayurja.gov.in)

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